आज के इस युग में कौन नही मोबाईल का इस्तेमाल करता है लगभग हर इंसान के पास स्मार्टफोन(Smartphone) ना सही एक कीपैड(Keypad) फोन जरुर होता है और सुबह से लेकर शाम तक दिन हो या रात हमेशा मोबाईल फोन का जरुरत होता है मोबाईल फोन हमारें कई कामों को आसान बना देता है हम कितने भी व्यस्त क्यो ना रहें पर दिन में कम से कम एक बार मोबाईल फोन को देखते ही है ऐसा लगता है कि मोबाईल फोन के बिना जी नही पायेगें । लेकिन क्या आपको पता है कि जितना लाभदायक है उतना ही ज्यादा मोबाईल फोन को इस्तेमाल करना हानिकारक है और हानिकारक में सें सबसे बड़ा खतरनाक मोबाईल रेडिएशन(Mobile Radiation) है और आपलोगो को तो पता ही होगा की मोबाईल रेडिएशन क्या होता है अगर नही पता है तो चलियें मैं आपलोगो को जानकारी के लिए बता दे कि मोबाईल रेडिएशन(Mobile Radiation) हमारे स्वास्थ के लिए काफी हानिकारक है और उसका प्रवाह सीधे हमारे शरीर पे पड़ता है रेडिएशन के संपर्क में ज्यादा रहने से हमारे शरीर के कोशिकाओं पर बूरा असर पड़ता है।
पहले थोड़ा समझ लेते हैं की रेडिएशन(Radiation) होता क्या है।
जिसे हिन्दी विविकरण कहा जाता है आपको बता दे कि हमारी वातावरण में फैली एक ऊर्जा(Energy) होती है और यें तरंग या कण के रुप में चलती रहती है इन तरंग को रेडियो तरंग(Radio Waves) भी कहा जाता है ।
एक सरल भाषा में कहे तो -
रेडिएशन एक समान्य शब्द है जो एक तरंग या कण के रूप में अंतरिक्ष में घूमने वाली एक ऊर्जा को कहते हैं।
● रेडिएशन(Radiation) दो प्रकार के होते हैं
1. गैरआयनीकृत रेडिएशन (non-ionising radiation) (कम ऊर्जा)
2. आयनीकृत रेडिएशन (ionising radiation) (अधिक ऊर्जा)
* Radiation(विविकरण) एक होता है मानव निर्मित और एक होता है प्राकृतिक रेडिएशन । और आज हम बात करने वाले हैं मानव निर्मित रेडिएशन यानि की मोबाईल रेडिएशन की ।
दूरसंचार उपकरण
कुछ लोगो द्वारा यह तर्क भी दिया जाता है कि कुछ दूरसंचार उपकरण जिनमें गैर आयनीकृत रेडिशन का प्रयोग होता है, जैसे मोबाइल और वाईफाई, यह भी हानिकारक हो सकते हैं।
हालांकि दुनिया के कई शोधों में इन उपकरणों से स्वास्थ्य को कोई बड़ा खतरा नहीं पाया गया है।
एक शोध कार्यक्रम जिसे मोबाइल टेलीकम्युनिकेशन हेल्थ रिसर्च(एमटीएचआर,MTHR) के नाम से जाना जाता है, जिसका रिसर्च ब्रिटेन में चल रहा है। उसकी 2007 की रिपोर्ट के अनुसार, ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है कि मोबाइल फोन के कुछ अवधि के प्रयोग से कैंसर का खतरा होता है या इससे दिमाग की सामान्य प्रक्रिया पर कोई असर पड़ता है। पिछले दो सालों के दौरान हुए कई अध्ययन भी यह दर्शाते हैं कि मोबाइल फोन और कैंसर की समस्या के बीच कोई लिंक नहीं है।
हालांकि, बड़े तौर पर यह स्वीकार किया गया है कि मोबाइल फोन का केवल 10 सालों से व्यापक रूप से उपयोग किया गया है, तो यह संभव है कि यह उससे संबंधित दीर्घकालिक जोखिमों या समस्याओं का पता नहीं लग पाया हो।
अब जानते हैं मोबाईल रेडिएशन होता क्या है?
मोबाईल रेडिएशन क्या है? What is a Mobile Radiation?
मोबाईल फोन को इस्तेमाल करते समय जो हमारे शरीर में रेडिएशन की मात्रा प्रवेश करता है उसे स्पेसिफिक एब्सार्पशन रेट(Specific Absorption Rate) कहा जाता है इसके संक्षप्ति में (SAR) भी कहा जाता है। (SAR) वह स्तर है जो ये बताता है कि हमारे शरीर कितनी मात्रा में रेडिएशन(Radiation) को ग्रहण कर सकता है आपको शायद पता भी होगा की भारत में इसकी एक तय सीमा बनाई गई है जिसके मुताबिक प्रत्येक मोबाईल फोन का स्पेसिफिक एब्सार्पशन रेट(Specific Absorption Rate) 1.6 वाट/किलोग्राम (1.6w/kg) सें ज्यादा नही होना चाहिए। और अगर उससे ज्यादा होता है तो यह हमारे लिए हानिकारक है।
अब आपको कैसे पता की आपके मोबाईल स्पेसिफिक एब्सार्पशन रेट(Specific Absorption Rate) का स्तर कितना है नीचे दिये गये स्टॉप को फॉलो करें।
अपने मोबाइल का रेडियशन स्तर यानि स्पेसिफिक एब्सार्पशन रेट(Specific Absorption Rate) जाँचने के लिये आप *#07# डायल करें, यह एक USSD code कोड है और हां यदि आपके फोन में True Caller है तो उसे uninstall कर लें उसमें USSD code काम नहीं करते हैैं अपने फोन में डायलर से Code डायल करें और अगर आपके फोन का SAR levels 1.6 वॉट प्रति किग्रा (1.6 W/kg) से अधिक है तो तुरंत अपना फोन बदलें
5G रेडिएशन(Radiation) सें क्या होता है?
5G Radiation se Kya hota hai?
5जी रेडिएशन के कारण कुछ दिनों से किसी भी चीज को छूने पर करंट महसूस होने जैसी बातें सोशल मीडिया पर खूब चर्चा में हैं.
कुछ इसी तरह सोशल मीडिया पर प्रथम न्यूज़ नाम के एक अख़बार की कटिंग वायरल है. वायरल कटिंग में छपी ख़बर की हेडिंग है-
‘कुछ दिनों से हर चीज छूने से महसूस हो रहा करंट, 5जी रेडियेशन के कारण इलेक्ट्रॉन प्रोटॉन की श्रृंखला में हो रहा उतार-चढ़ाव’
5G रेडियेशन का मानव शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में सर्च करने पर हमें विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO की वेबसाइट पर इससे जुड़ी जानकारी मिली. WHO की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक़, अभी तक हुए रिसर्च में 5G रेडियेशन के कारण स्वास्थ्य पर किसी प्रकार के दुष्परिणाम की कोई बात सामने नहीं आई है. हालांकि अभी तक 5G से जुड़ी रिसर्च कम ही हुई है. रेडियेशन के कारण पैदा होने वाली रेडियो फ्रीक्वेंसी से हमारे शरीर के टिशू गर्म जरूर होते हैं. लेकिन इससे हमारे शरीर के तापमान पर बहुत ही कम असर होता है. कुल मिलाकर हमारे शरीर पर इसका असर न के बराबर होता है!
इसके बाद दीलल्लनटॉप ने इस रेडियेशन के कारण करंट महसूस होने के दावे को समझने के लिए IIT दिल्ली के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट में असिस्टेंट प्रोफेसर अभिषेक दीक्षित से बात की. उन्होंने ‘दी लल्लनटॉप’ को बताया-
“कोई भी रेडियेशन इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव के कारण पैदा होती है, उसका कोई पोटेंशियल नहीं होता, इसलिए किसी भी वेव से करंट लगने की आशंका नहीं होती. 5G रेडियेशन के कारण करंट लगने की बात सिर्फ़ एक अफ़वाह हो सकती है. रेडियेशन का कोई शॉर्ट टर्म नुकसान बॉडी को नहीं होता है. करंट हमारे शरीर में तभी लग सकता है जब हम किसी हायर पोटेंशियल वाली चीज को छूते हैं. डेली लाइफ में चीजें छूने से महसूस होने वाले करंट का कोई नुकसान नहीं है. जैसे हमें कभी कंघी या कुर्सी को छूते हैं तो हमें कभी-कभी हल्का करंट महसूस होता है. इसका पोटेंशियल कम होता है, इसलिए इससे हमें नुकसान नहीं होता. लेकिन अगर आप इलेक्ट्रिसिटी वायर को छूएंगे तो आपके लिए वो ख़तरनाक हो सकता है.”
भारत में अभी 5G इंटरनेट सेवाएं शुरू नहीं हुई है. इंडिया टुडे की 9 फरवरी 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक़, देश में 5G इंटरनेट सेवाएं 2022 की शुरुआत में शुरू होने की संभावना है. शुरुआत में कुछ ख़ास यूज़र्स ही 5G सेवाओं का लाभ उठा सकेंगे.
किसी भी चीज को छूने पर कभी-कभी करंट लगने की घटना सामान्य है. हम सबके साथ ऐसा कभी न कभी होता है. आइए, इसके पीछे की साइंस को समझने की कोशिश करते हैं.
साइंस के नज़रिए से बात करें तो ब्रम्हांड में मौजूद सभी चीजें एटम (परमाणु) से बनी होती हैं. हर एटम में इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन होते हैं. इलेक्ट्रॉन्स में निगेटिव चार्ज होता है. प्रोटॉन्स पोजिटिवली चार्ज्ड होते हैं. जबकि न्यूट्रॉन्स पर कोई चार्ज नहीं होता. एक एटम में इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन की संख्या बराबर होने पर वो स्थिर होता है. जैसे ही इनकी संख्या कम या ज़्यादा होती है एटम की स्थिरता गड़बड़ा जाती है.
सामान्य तौर पर किसी भी तरह के घर्षण के कारण हमारे शरीर में इलेक्ट्रॉन की संख्या बढ़ जाती है और दूसरे वस्तु में कम हो जाती है. इसके बाद जब हम किसी चीज को छूते हैं तो हमारे शरीर से एक्स्ट्रा इलेक्ट्रॉन बाहर निकलते हैं. तब हमें करंट महसूस होता है. साइंस में इस करंट को स्टैटिक करंट कहते हैं. सर्दियों के मौसम में स्टैटिक करंट का ज़्यादा असर देखने को मिलता है. क्योंकि सर्दियों में हवा में नमी कम होती है. इस कारण इलेक्ट्रॉन आसानी से हमारे स्कीन की सतह पर विकसित हो जाते हैं. जबकि गर्मियों में नमी के कारण इलेक्ट्रॉन्स समाप्त हो जाते हैं. इसलिए हमें करंट का अनुभव कम होता है.
यूट्यूब पर उपलब्ध इस एनिमेटेड वीडियो आप किसी चीज को छूने पर लगने वाले करंट को आसानी से समझ सकते हैं.





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